दिल्ली की वो संकरी गलियां थीं, जहां घर एक-दूसरे से चिपके हुए थे, और सड़कों पर हमेशा भीड़ उमड़ी रहती थी। मैं, अर्जुन, 29 वर्ष का युवा राजपूत युवक, एक किराए के कमरे में रहता था। मेरी नौकरी दिल्ली के एक कार्यालय में थी, और मैं अकेलेपन की जिंदगी जीता था। मेरा 8 इंच लंबा, मोटा, काला लंड सदैव किसी चूत की खोज में रहता था। उसकी टिप गीली होकर चमक रही होती, और उसकी नसें फूली हुईं दिखाई देतीं, मानो कोई हथियार जो चूत को चीरने को तैयार हो। कार्यालय से वापस आने के बाद मेरी शामें अक्सर ऊबाऊ गुजरती थीं, लेकिन तभी मेरी नजर पड़ोसन राजपूत भाभी पर पड़ी।

भाभी का नाम कविता था। वह 32 वर्ष की थी, गोरी, पूर्णकाय वाली राजपूत स्त्री। उसके स्तन बड़े, गोल और रसीले थे, जैसे दो पके संतरे, जो उसके तंग साड़ी में हमेशा खड़े रहते। उसके निप्पल साड़ी के नीचे हल्के से झांकते, जैसे दो कठोर गुलाबी मोती जो बाहर निकलने को बेचैन थे। उसकी कमर पतली थी, और उसकी गांड मोटी, मुलायम और गोलाकार, जो चलते समय लहराती। उसकी जांघें मोटी और चिकनी थीं, जैसे मक्खन का ढेर, और उसकी चूत की गर्मी हर हरकत में झलकती। उसका पति, जो एक टैक्सी चालक था, रात देर से घर लौटता या कभी-कभी बाहर ही ठहर जाता। कविता भाभी अकेली रहती, और उसके नेत्रों में एक भूख थी, जो मुझे अपने लंड की ओर खींच रही थी।

एक दिन की बात है। दिल्ली में अगस्त की गर्म रात थी, और पंखा खराब हो गया था। मैं अपनी कोठरी की बालकनी में खड़ा था। पसीने से मेरा बनियान भीग चुका था, और मेरा लंड पाजामे में कड़ा होकर उभार बना रहा था। तभी कविता भाभी अपनी बालकनी में आई। वह पतली साड़ी में थी, और उसका पसीना उसके स्तनों पर चिपका हुआ था। उसके स्तन साड़ी से साफ दिख रहे थे, और पसीने की बूंदें उसके गहरे गर्त में लुढ़क रही थीं। “अर्जुन, गर्मी बहुत तेज है न?” उसने हिंदी में कहा और मेरी ओर देखकर मुस्कुराई। उसकी दृष्टि मेरे लंड के उभार पर अटक गई।

“हां भाभी, शरीर जल रहा है,” मैंने हिंदी में उत्तर दिया और उसके स्तनों को घूरा। उनकी गोलाई और निप्पलों का उभार मुझे पागल कर रहा था। “पानी पियोगे?” उसने पूछा और अपनी कोठरी की ओर इशारा किया। “हां भाभी, क्यों नहीं,” मैंने कहा और उसके पीछे-पीछे चला गया। उसकी कोठरी में अंधेरा था, और गर्मी से उसका पूरा शरीर पसीने से तर था। उसने मुझे पानी का गिलास थमाया, और गिलास लेते हुए उसके उंगलियों ने मेरे हाथ को छुआ। मेरे लंड में करंट दौड़ गया। “भाभी, आप भी पसीने से भीग गई हैं,” मैंने कहा और अपने हाथ से उसके चेहरे का पसीना पोंछा। मेरा हाथ उसके गाल से सरककर उसके गले तक पहुंचा, और उसकी चिकनी त्वचा की गर्मी मेरे लंड को और कठोर बना रही थी। “अर्जुन, अंदर से भी गर्मी महसूस हो रही है,” वह धीरे से बोली और अपनी साड़ी को थोड़ा नीचे सरकाया। उसके स्तन अब साड़ी से बाहर झांक रहे थे, और उसके निप्पल स्पष्ट रूप से उभरे दिख रहे थे।

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मैं समझ गया कि भाभी की चूत में आग लगी हुई है। मैंने उसकी पतली कमर पकड़ी और उसे अपनी ओर खींच लिया। उसका मुलायम शरीर मेरी छाती से सटा, और उसके स्तन मेरे हाथों तले दब गए। “भाभी, इस आग को मैं बुझा दूं?” मैंने फुसफुसाते हुए कहा और उसके स्तनों पर हाथ रखा। उसने कुछ न कहा, लेकिन उसकी सांसें तेज हो गईं। मैंने उसकी साड़ी ऊपर उठाई, और उसके स्तन नंगे हो गए। वे गोरे, गोल और आकर्षक थे, जैसे दो दूध की थैलियां मेरे सामने लटक रही हों। उसके निप्पल गुलाबी और कठोर थे, और उनकी गोलाई देखकर मेरा लंड पाजामे में फटने को तैयार था। “भाभी, आपके स्तन तो कमाल के हैं,” मैंने कहा और एक स्तन मुंह में ले लिया। मैं उसके निप्पल को चूसने लगा, जीभ से चाटने लगा, और दूसरे स्तन को जोर-जोर से मसलने लगा। “आह्ह… अर्जुन… धीरे… आह्ह…” वह सिसकार रही थी। उसके स्तन मेरे हाथों में मसले जा रहे थे, और उसका निप्पल मेरे मुंह में कठोर होकर बड़ा हो गया। मैंने उसे हल्का सा काटा, और वह चीखी, “आह्ह… अर्जुन… मजा आ रही है।”

मैंने उसकी साड़ी पूरी तरह उतार दी। वह मेरे सामने नंगी थी। उसकी चूत के हल्के बाल पसीने से चिपके हुए थे, और उसके गुलाबी होंठ गीले होकर चमक रहे थे। उसकी चूत गर्म, तंग और लुभावनी थी, जैसे कोई भट्टी जो मेरे लंड को बुला रही हो। उसकी खुशबू मेरी नाक में घुस रही थी, और मेरी चूत में सनसनाहट हो रही थी। “भाभी, आपकी चूत तो आग उगल रही है,” मैंने कहा और अपना उंगली उसकी चूत में डाल दी। “आह्ह… अर्जुन…” वह चीखी। उसकी चूत तंग और गीली थी, और मेरा उंगली अंदर खींच रही थी। मैंने दो उंगलियां डालीं और उसकी चूत को चोदने लगा। उसकी चूत से पानी टपक रहा था, और वह सिसकार रही थी, “अर्जुन, चोदो ना… मेरी चूत तड़प रही है… लंड डालो।”

मैंने अपना पाजामा उतार दिया। मेरा 8 इंच का लंड कड़ा, मोटा और काला था। उसकी टिप गीली होकर चमक रही थी, और उसकी नसें उभरी हुईं थीं। मैंने उसे हल्का सा हिलाया, और कविता की आंखें मेरे लंड पर टिक गईं। “अर्जुन, तेरा लंड तो शानदार है,” वह फुसफुसाई। मैंने कविता को बिस्तर पर लिटाया और उसके पैर फैला दिए। उसकी चूत पूरी तरह खुल गई। उसकी जांघें मोटी और गोरी थीं, और उसकी गांड मुलायम और गोल थी, जो बिस्तर पर फैली हुई थी। उसकी चूत के होंठ गीले और लाल थे, और उसका पानी उसकी जांघों तक बह रहा था। मैंने अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ा। उसकी गर्मी मेरे लंड को छू रही थी, और मैं पागल हो रहा था। “भाभी, लो मेरा लंड,” मैंने कहा और एक जोरदार धक्का दिया। मेरा लंड उसकी चूत में पूरा अंदर चला गया। “आह्ह… अर्जुन… मर गई… आह्ह…” वह चीखी। उसकी चूत तंग थी, और मेरा लंड उसे चीर रहा था।

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मैं उसके स्तनों को दबाते हुए चुदाई शुरू कर दी। “भाभी, आपकी चूत कितनी गर्म है… लंड जल रहा है,” मैं बोला। मेरा लंड उसकी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था, और हर धक्के से उसकी गांड हवा में उछल रही थी। उसके स्तन मेरे हाथों में मसले जा रहे थे, और उसके मुंह से “आह्ह… ओह्ह… अर्जुन… चोदो… और जोर से… आह्ह…” निकल रहा था। “भाभी, तेरी चूत का भोसड़ा बनाऊंगा,” मैंने कहा और उसके पैर अपने कंधे पर रख दिए। अब मेरा लंड उसकी चूत की गहराई में जा रहा था, और उसकी चूत मेरे लंड को चूस रही थी। “अर्जुन, मेरी चूत फाड़… लंड पूरा डाल… आह्ह…” वह चिल्ला रही थी। उसकी चूत गीली होकर लाल हो गई थी, और उसका पानी मेरे लंड से चिपक रहा था। मैंने उसके स्तनों पर थप्पड़ मारा, और वह और सिसकी। “अर्जुन, मेरे स्तन चूसो… चोदो मुझे… आह्ह…” वह बोली। मैंने एक स्तन मुंह में लिया और चूसने लगा, और दूसरे को मसलता रहा। उसके स्तन लाल हो गए, और उसके निप्पल मेरे मुंह में कठोर हो गए।

करीब आधा घंटा मैंने उसकी चूत चोदी। उसकी चूत से पानी की धार निकल रही थी, और उसकी सांसें तेज थीं। फिर मैंने उसे उलट दिया। उसकी गांड मेरे सामने थी। उसकी गांड की दरार में पसीना चमक रहा था, और उसका छेद तंग और गुलाबी था। उसकी गांड गोल और मुलायम थी, जैसे दो तकिए जो मेरे लंड को बुला रहे हों। “भाभी, तेरी गांड भी चोदूंगा,” मैंने कहा और उसकी गांड पर थूक दिया। मैंने अपना उंगली उसकी गांड में डाला, और वह सिसकी, “आह्ह… अर्जुन… धीरे…” मैंने अपना लंड उसकी गांड के छेद पर रखा और एक जोरदार धक्का दिया। “आह्ह… अर्जुन… फट गई… आह्ह…” वह रोई, लेकिन मैं रुका नहीं। मेरा लंड उसकी गांड में पूरा अंदर चला गया, और मैंने उसे कुत्ते की तरह चोदना शुरू कर दिया। “भाभी, तेरी गांड कमाल की है… लंड को मजा आ रहा है,” मैं बोला और उसके स्तनों को पीछे से मसलने लगा।

उसकी गांड में मेरा लंड अंदर-बाहर हो रहा था। उसकी गांड तंग थी, और मेरा लंड उसे चीर रहा था। “अर्जुन, और जोर से… मेरी गांड मारो… आह्ह…” वह चिल्ला रही थी। मैंने उसकी गांड पर थप्पड़ मारा और कहा, “भाभी, तेरी गांड फाड़ दूंगा।” उसके स्तन हवा में लटक रहे थे, और मैं उन्हें पीछे से पकड़कर मसल रहा था। उसकी गांड लाल हो गई थी, और उसकी सिसकियां तेज हो रही थीं। “अर्जुन, मेरी चूत में वापस डाल… चोदो मुझे,” उसने कहा। मैंने उसे फिर सीधा किया और उसकी चूत में लंड ठूंस दिया। “भाभी, तेरी चूत में झड़ने वाला हूं,” मैंने कहा और इतने जोर से चोदा कि बिस्तर हिलने लगा। उसकी चूत से पानी छूटा, और वह चीखी, “अर्जुन, मैं चली गई… आह्ह…” उसकी चूत से पानी की धार निकली, और मेरा लंड फट गया। मैंने अपना गर्म माल उसकी चूत में डाल दिया। “भाभी, तेरी चूत शानदार है,” मैंने कहा और उसके होंठ चूसने लगा।

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हम दोनों पसीने से तर होकर बिस्तर पर गिर पड़े। उसके स्तन मेरी छाती से दब रहे थे, और उसकी चूत से मेरा माल बह रहा था। “अर्जुन, ये गर्मी फिर महसूस होगी,” कविता हंसकर बोली। मैंने उसकी गांड पर थप्पड़ मारा और कहा, “भाभी, जब भी चूत गर्म हो, मेरा लंड तैयार रहेगा।”

अगली रात का खेल

अगली रात पंखा फिर खराब हो गया। कविता ने मुझे अपनी कोठरी में बुलाया। “अर्जुन, आज बाथरूम में चलें?” वह बोली। हम बाथरूम में गए। वहां उसने साड़ी उतारी और अपनी चूत मेरे सामने कर दी। उसकी चूत अभी भी गीली थी, और उसके होंठ लाल थे। “चोदो ना,” वह बोली। मैंने उसे शावर के नीचे खड़ा किया और उसकी चूत में लंड ठूंस दिया। “भाभी, तेरी चूत शावर में भी कमाल की है,” मैंने कहा और उसे चोदा। पानी हम दोनों पर बह रहा था, उसके स्तन हवा में उछल रहे थे, और उसकी गांड मेरे धक्कों से टकरा रही थी। “अर्जुन, मेरी गांड भी मारो,” उसने कहा। मैंने उसे उलट दिया और उसकी गांड में लंड डाल दिया। “आह्ह… अर्जुन… फाड़ो… आह्ह…” वह चीखी।

हमने बाथरूम में घंटाभर चुदाई की। उसकी चूत और गांड मेरे माल से भर गईं। फिर वह बोली, “अर्जुन, किसी को मत बताना।” मैंने उसके स्तन चूसे और कहा, “भाभी, ये हमारा राज रहेगा।” उस रात उसने मुझे फिर बुलाया, और हम बिस्तर पर चुदाई करने लगे। उसकी चूत, गांड और मुंह—सब मेरे लंड से भर गए।

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