आज मैं आपको अपनी ज़िंदगी की वो दास्तान सुनाने जा रही हूँ, जिसे अगर गलती से मेरे पति ने पढ़ लिया, तो वो अपने ऑफिस के हर मर्द को बारी-बारी से बुलाकर मेरी मुलायम, बिना बालों वाली गुलाबी गर्म चूत को चुदवा-चुदवाकर मेरी चूत का भोंसड़ा बनवा देगा।

मेरा मर्द बहुत बड़ा चुदक्कड़ है, साला चोदता कम है और चिल्लाता ज़्यादा है। खैर, पहले मैं आपको अपने बारे में कुछ बता दूँ। मेरा जन्म एक छोटे से कस्बे में हुआ था।

हम पाँच बहनें हैं। मेरी ममता जी, मेरी पाँचवीं बहन के जन्म के बाद ही पिताजी ने उन्हें घर से निकाल दिया। मेरी बड़ी बहन ने बहुत कोशिश की, पर वो नहीं माने।

असल में पिताजी की नज़र पड़ोस वाले कस्बे के किसी बनिए की विधवा बहू पर पड़ गई थी। माँ के जाते ही पिताजी उसे घर ले आए, क्योंकि पिताजी का रुतबा बहुत था।

उन दिनों तो किसी ने कोई आवाज़ नहीं उठाई। खैर, मैं इन सब दुनियादारी वाली बातों से अनजान अपने तरीके से बड़ी हो रही थी। क्योंकि अपनी माँ की पाँचवीं बेटी मैं ही थी।

तो सारी बहनें मुझे इस सब का ज़िम्मेदार समझकर मुझसे बातचीत नहीं करती थीं। पिताजी पर तो उस चमक-छलो ने ऐसा जादू किया था कि पिताजी सारा दिन उसके कमरे में ही घुसे रहते थे।

इस तरह मैं बड़ी हो गई। पिताजी ने मुझे पढ़ाने के लिए हमेशा प्रेरित किया। हम सभी बहनें घर पर रहकर ही पढ़ाई करती रही। जब मेरी 11वीं क्लास के बोर्ड के एग्ज़ाम थे, तो पिताजी ने मेरे लिए एक मास्टर जी का इंतज़ाम कर दिया।

वो मास्टर जी मुझे रोज़ पढ़ाने आते थे। वो दोपहर 2 बजे पढ़ाने आते थे। मास्टर जी 35 साल के थे। वो ज़ोर से बोल नहीं पाते थे, शायद वो बीमार थे इसीलिए। तो अब मेरी कहानी कुछ इस तरह थी।

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एक रात मेरी बड़ी बहन ने मुझे बहुत मारा। मुझे लगा शायद उसे माँ की याद आ रही होगी। मेरी सभी बहनें माँ को याद करती हैं, तो वो सब मेरी ही पिटाई करती हैं। पर उस दिन मुझे बहुत बुरा लगा। मैं चुपचाप अपने कमरे में आकर रोने लग गई।

तभी मुझे कुछ अजीब सी आवाज़ आई। मैंने इधर-उधर देखा तो मुझे लगा कि ये आवाज़ पिताजी के कमरे से आ रही है। मैं दबे पाँव उनके कमरे की तरफ जाकर खिड़की से अंदर देखने लग गई।

अंदर का नज़ारा देखकर मैं दंग रह गई। अंदर मेरी सौतेली माँ हमारे नौकर शाम के होंठ चूस रही थी। शाम का एक हाथ मेरी माँ की गांड पर था और दूसरा हाथ उनके स्तनों को मसल रहा था।

ये नज़ारा देखकर मेरे दिमाग में करंट सा लगा। तभी मेरी नज़र बिस्तर पर पड़ी। उसे देखकर तो मेरा सिर ही घूमने लग गया, क्योंकि मैंने देखा कि मेरे पिताजी भी बेड पर नंगे लेटे अपने लंड को हिला रहे थे।

मुझे थोड़ा धक्का सा लगा। मैंने कभी किसी का इतना बड़ा लंड नहीं देखा था। मेरी दोनों टाँगों के बीच गुदगुदी सी होने लग गई थी। फिर माँ ने शाम के होंठों से अपने होंठ चिपका दिए।

माँ अब उसकी धोती को खींच रही थी। शाम भी मेरी माँ के ब्लाउज़ को ज़ोर से खींचने लग गया।
पिताजी: और ज़ोर से खींच ना, फाड़ दे।

इतना सुनते ही शाम ने माँ का ब्लाउज़ खींचकर फाड़ दिया और मेरी माँ के स्तन एकदम से बाहर आ गए। शाम फिर मेरी माँ के स्तनों को एक कुत्ते की तरह चूसने लग गया।

मेरी माँ ज़ोर-ज़ोर से सिसकियाँ ले रही थी। पिताजी का लंड एक डंडे की तरह खड़ा था। मेरी माँ ने इस बार शाम की धोती को एक ही झटके में खींच दिया। धोती खुलते ही शाम का लंड भी साँप की तरह फनफनाता हुआ ऊपर-नीचे होने लग गया।

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ये देखकर मेरे तो जोश ही उड़ गए थे। मेरी माँ ने तभी शाम के लंड को अपने हाथों से पकड़ लिया और सहलाने लग गई। शाम भी मेरी माँ के स्तनों को धीरे-धीरे दबा रहा था। फिर माँ ने पिताजी की तरफ देखा।
पिताजी: चूस ले रांड, आज इस लंड को भी चूस ले।

फिर माँ ने शाम के लंड को अपने मुँह में लेकर आइसक्रीम की तरह चूसने लग गई। शाम माँ के मुँह में ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगा रहा था। तभी मैंने देखा कि पिताजी के लंड को अपने हाथों में दबाकर आगे-पीछे करने लग गई।
पिताजी: हाय, ये क्या करने लग गए।

कुछ ही देर में पिताजी के लंड से एक पिचकारी निकली और पिताजी हाँफते हुए पीछे लुढ़क गए। फिर माँ ने शाम को अपने ऊपर लेटाने को कहा।

शाम माँ के ऊपर लेट गया और ज़ोर-ज़ोर से उछलते हुए गालियाँ देने लग गया।
माँ: उफ्फ आह, और ज़ोर से चोद, आह आह।

ऐसे कहते हुए माँ नीचे से अपनी गांड हिला रही थी। इधर मेरी पैंटी पूरी तरह भीग चुकी थी, पर मैंने फिर भी उन्हें देखा जारी रखा। कुछ देर बाद शाम “आया आया” कहते हुए माँ के ऊपर कसकर लेट गया।
माँ: आजा मेरे राजा।

ये कहते हुए माँ उससे लिपट गई। तभी मेरी बड़ी बहन की आवाज़ सुनकर मैं वापस अपने कमरे की ओर भागी और कमरे में जाकर रजाई में घुस गई। मेरी पैंटी पूरी तरह से भीग चुकी थी और मेरी साँसें भी गर्म हो गई थीं।

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मेरे पूरे जिस्म में चीटियाँ काट रही थीं। मैंने किसी तरह अपनी पैंटी बदली और वापस लेट गई। पर नींद तो मेरी आँखों से बहुत दूर थी। मेरा हाथ मेरी चूत पर अपने आप चला गया।

मैं अब शाम के लंड के बारे में सोचकर अपनी गर्म चूत को सहलाने लग गई। मेरी साँसें तेज़ चलने लग गई थीं। मेरे जिस्म में एक अजीब सी गर्मी चढ़ गई थी। मैं “हाय शाम, हाय शाम” कहते हुए अपनी चूत पर हाथ फेरने लग गई।

तभी मुझे लगा कि मैं हवा में उड़ रही हूँ। मैंने अपना हाथ तेज़ी से अपनी गर्म चूत पर चलाना शुरू कर दिया। कुछ ही पलों के बाद मेरी गर्म चूत से एक पतली सी धार निकलने लग गई।

मुझे इतना ज़्यादा मज़ा कभी नहीं आया था और वो मज़ा मैं आपको बता नहीं सकती थी। कुछ देर तक मैं वैसे ही पड़ी रही और फिर मुझे नींद आ गई। उस रात मैंने पहली बार जाना कि जवानी किसे कहते हैं।

उस दिन से मैंने अपनी जवानी में कदम रख दिया था। अब मेरी शादी हो चुकी है। शादी से पहले मैंने अपनी गर्म चूत का पानी बहुत लोगों को पिलाया है।

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