मेरा नाम शीला है। मैं 45 साल की हूँ और जयपुर में अपनी बेटी के घर रहती हूँ। मेरी बेटी, काव्या, और मेरा दामाद, विक्रम, दोनों नौकरी करते हैं। काव्या 25 साल की है, और विक्रम 28 का। मैं विधवा हूँ—मेरा पति दस साल पहले गुजर गया। लेकिन मेरा शरीर अभी भी जवान है। मेरे स्तन भरे हुए और सख्त हैं, मेरी गांड चलते समय लचकती है, और मेरी चूत में अभी भी वह आग है, जो मुझे रात को सोने नहीं देती। लोग मुझे देखकर कहते हैं, “शीला जी, आप अभी भी युवा दिखती हैं।” लेकिन यह जवानी मैं किसे दिखाऊँ? अपने दामाद को छोड़कर!

विक्रम आकर्षक है—लंबा, मजबूत शरीर, गोरा रंग, और उसकी आँखों में एक भूख है। वह मुझे “सासू माँ” कहता है, लेकिन उसकी नज़रों में एक अलग चमक होती है। काव्या सुबह जल्दी ऑफिस चली जाती है और देर शाम लौटती है। मैं और विक्रम दिनभर घर में अकेले रहते हैं। शुरू में मैं उसे सिर्फ़ दामाद के रूप में देखती थी, लेकिन पिछले कुछ महीनों से उसकी नज़रों ने मेरे शरीर में आग लगा दी है। वह मेरे स्तनों को घूरता है, मेरी गांड देखकर उसकी साँसें तेज़ हो जाती हैं। और मैं? मेरी चूत उसे देखकर गीली होने लगी थी।

एक दिन की बात है। दोपहर का समय था। काव्या ऑफिस गई थी। मैं रसोई में बर्तन साफ़ कर रही थी। मैंने एक पतली साड़ी पहनी थी, और पसीने से मेरा ब्लाउज़ चिपक गया था। मेरे स्तन ब्लाउज़ से बाहर आने को बेताब थे। विक्रम पीछे से आया और बोला, “सासू माँ, क्या कर रही हो?” मैंने हँसकर कहा, “क्या दिख रहा है? बर्तन साफ़ कर रही हूँ।” वह मेरे पास आया। उसकी साँसें मेरी गर्दन पर महसूस हुईं। “सासू माँ, आप कितनी ख़ूबसूरत लगती हो,” उसने धीरे से कहा। मेरा दिल तेज़ी से धड़का। मैंने कहा, “विक्रम, ऐसा क्या बोल रहा है?” वह मेरे पीछे खड़ा हो गया और उसने मेरा कमर पर हाथ रखा। “सासू माँ, आपकी यह कमर मुझे पागल कर देती है,” उसने फुसफुसाया।

मेरी चूत में आग भड़क उठी। मैंने कहा, “विक्रम, यह ठीक नहीं है। मैं तेरी सास हूँ।” लेकिन मेरी आवाज़ में दम नहीं था। वह मेरे और करीब आ गया। उसका हाथ मेरी साड़ी के ऊपर से मेरे स्तनों पर गया। “सासू माँ, आपके ये स्तन मुझे बुलाते हैं,” उसने कहा और मेरे स्तनों को दबाया। मैं सिसकी—“आह, विक्रम, धीरे।” उसने मेरी साड़ी कंधे से खींच दी। मेरे स्तन ब्लाउज़ में नंगे हो गए—सख्त, भरे हुए, और पसीने से चमकते। “क्या शानदार स्तन हैं आपके,” उसने कहा और मेरे निप्पल पर मुँह रखा। उसने उन्हें चूसा, और मैं चीखी—“उफ़, विक्रम, ये क्या कर रहा है?”

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उसने मेरा ब्लाउज़ फाड़ दिया। मेरे स्तन उसके सामने नंगे हो गए। उसका हाथ मेरी गांड पर गया। मेरी साड़ी नीचे खिसक चुकी थी, और मेरी गांड उसे दिख रही थी। “सासू माँ, आपकी गांड कितनी मुलायम है,” उसने कहा और उसे सहलाया। मेरी चूत गीली हो चुकी थी। मैं सिसकते हुए बोली, “विक्रम, मुझे चोद। अब बर्दाश्त नहीं होता।” उसने मुझे रसोई से बेडरूम में ले गया। मेरी साड़ी पीछे रह गई। मैं पूरी नंगी थी। मेरी चूत गीली और गर्म थी। उसने अपने कपड़े उतार फेंके। उसका लंड बाहर आया—लंबा, मोटा, और तना हुआ। “सासू माँ, ये आपकी चूत के लिए है,” उसने कहा।

उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया। मेरे पैर फैलाए। मेरी चूत उसके सामने खुल गई। उसने मेरी चूत पर जीभ रखी। वह गीली थी, रस से टपक रही थी। उसने मेरी चूत चाटी, और मैं चीखी—“आह, विक्रम, मैं पागल हो जाऊँगी।” उसने मेरी चूत चूसी। मेरा रस उसके मुँह में गया। “सासू माँ, आपकी चूत कितनी मीठी है,” उसने कहा। मैं सिसकते हुए बोली, “विक्रम, मुझे चोद। मेरी चूत तेरे लिए तड़प रही है।” उसने अपना लंड मेरी चूत पर रगड़ा। मैं काँप रही थी। उसने एक ज़ोरदार धक्का मारा, और उसका लंड मेरी चूत में घुस गया। मैं चीखी—“आह, विक्रम, मेरी चूत फट गई।”

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उसने मुझे चोदना शुरू किया। उसका लंड मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। मेरे स्तन हर धक्के के साथ उछल रहे थे। मैं चीख रही थी—“आह, विक्रम, और ज़ोर से। मेरी चूत फाड़ दे।” वह पागलों की तरह मुझे चोद रहा था। उसकी साँसें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं, और मेरे शरीर में आग लगी थी। उसने मुझे पलट दिया। मेरी गांड उसके सामने नंगी हो गई—मुलायम, गोल, और लचकती। “सासू माँ, आपकी गांड भी चोदूँगा,” उसने कहा। मैं सिसकते हुए बोली, “चोद, विक्रम। मेरी गांड तेरी है।”

उसने मेरी चूत में पीछे से लंड डाला और मुझे चोदना शुरू किया। उसके हाथ मेरी गांड पर पड़ रहे थे। मैं सिसक रही थी—“उफ़, विक्रम, मेरी गांड जल रही है।” उसने मेरी गांड में एक उंगली डाली, और मैं पागल हो गई—“आह, मुझे मार डालेगा।” वह मुझे चोदता रहा। मेरी चूत उसके लंड से भरी थी। दोपहर बीत गई, और हमारी चुदाई चलती रही। कभी उसने मुझे बिस्तर पर चोदा, कभी मुझे उठाकर मेरी गांड पर ठोका। मेरे स्तन उसके मुँह में थे, और वह उन्हें चूस रहा था। मैं चीखी—“विक्रम, मेरी चूत भर दे।” उसने मुझे दीवार के सहारे टेककर चोदा। उसका लंड मेरी चूत की गहराई में गया, और मैं चीखी—“आह, मेरी चूत सूज गई।” उसने अपना वीर्य मेरी चूत में छोड़ दिया, और मैं उसकी छाती पर ढह गई।

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शाम हो गई। हम दोनों पसीने से भीगकर बिस्तर पर पड़े थे। मेरी चूत दुख रही थी, और मेरे पैर काँप रहे थे। विक्रम ने मेरे स्तन धीरे से दबाए और कहा, “सासू माँ, आपने मुझे दीवाना कर दिया।” मैं हँसी और बोली, “विक्रम, तूने जो सुख दिया, वह मेरे पति ने भी नहीं दिया।” उसने मेरे होंठों पर चूमा, और मैंने उसकी छाती पर सिर रख दिया।

उस दिन के बाद मेरा और विक्रम का रिश्ता बदल गया। जब भी काव्या घर पर नहीं होती, विक्रम मुझे चोदता है। मेरे स्तन, मेरी गांड, मेरी चूत—सब उसका हो गया। हमने एक हद पार की, जो गलत थी, लेकिन उस गलती में एक अनोखा सुख था। मैं अपने दामाद से चुदवाती हूँ, और उस आग में मैं फिर से जवान हो गई हूँ।

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