भैया ने गांड मारी की कहानी

मेरा नाम रेखा है। मैं 24 साल की हूँ और मुंबई में एक छोटे कॉलेज में पढ़ती हूँ। मेरा भाई, संदीप, मुझसे चार साल बड़ा है। वह 28 का है और एक मार्केटिंग कंपनी में काम करता है। संदीप दिखने में हैंडसम है—लंबा, मजबूत शरीर, गोरा रंग, और उसकी आँखों में एक शरारती चमक। मैं भी दिखने में अच्छी हूँ—मेरे स्तन टाइट और गोल, मेरी गांड चलते वक्त मटकती है, और मेरी चूत की गर्मी मुझे खुद महसूस होती है। हम बचपन से करीब रहे हैं, लेकिन कभी ऐसा ख्याल मन में नहीं आया—उस रात तक, जब तक वह रात नहीं आई।

एक बार संदीप को अपनी कंपनी के काम से पुणे जाना था। उसने मुझे फोन किया और कहा, “रेखा, मेरे साथ पुणे चल ना। वहाँ घूमेंगे, मजे करेंगे।” मेरे कॉलेज में छुट्टी थी, तो मैंने तुरंत हाँ कर दी। हम ट्रेन से पुणे पहुँचे और एक छोटे होटल में कमरा बुक किया। होटल साधारण था, लेकिन साफ था। सिर्फ एक कमरा था—एक बिस्तर, एक खिड़की, और हल्की रोशनी। संदीप ने कहा, “रेखा, हम दोनों एक ही बिस्तर पर सो जाएँगे। कोई दिक्कत तो नहीं?” मैं हँसकर बोली, “नहीं, भैया। हम तो भाई-बहन हैं।” लेकिन मेरे मन में एक अजीब सी फीलिंग थी।

रात के 10 बजे। हमने खाना खाया और बिस्तर पर बैठ गए। मैंने एक पतली नाइटी पहनी थी—पसीने से वह मेरे शरीर से चिपक गई थी। मेरे स्तन नाइटी से बाहर झलक रहे थे, और मेरी गांड बिस्तर पर उभर रही थी। संदीप शॉर्ट्स और बनियान में था। उसका मजबूत शरीर मुझे दिख रहा था। वह मुझे देखकर बोला, “रेखा, तू बहुत हॉट लग रही है।” मैं शरमाई और बोली, “भैया, ये क्या बोल रहे हो?” वह पास सरक आया और बोला, “रेखा, तेरी यह गांड और स्तन मुझे पागल कर रहे हैं।” मेरा दिल धड़कने लगा।

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वह मेरे और करीब आया। उसका हाथ मेरे कंधे पर गया। “भैया, यह ठीक नहीं है,” मैंने कहा, लेकिन मेरी आवाज में दम नहीं था। उसने मुझे अपनी बाहों में खींच लिया। उसके होंठ मेरे होंठों से टकराए—गर्म, नरम, और मुझे उत्तेजित करने वाले। मैंने उसके होंठ चूसना शुरू किया। वह सिसक उठा— “आह, रेखा।” उसके हाथ मेरी नाइटी पर गए। उसने उसे ऊपर सरकाया और मेरे स्तन नंगे कर दिए। “क्या मस्त स्तन हैं तेरे,” उसने कहा और मेरे निप्पल चूसने लगा। मैं चीखी— “उफ, भैया, ये क्या कर रहे हो?”

उसने मेरी नाइटी फाड़ दी। मैं उसके सामने नंगी थी। उसके हाथ मेरी गांड पर गए। “रेखा, तेरी गांड कितनी मुलायम है। आज मैं तेरी गांड मारूँगा,” उसने कहा। मेरी चूत गीली हो चुकी थी। मैं सिसकते हुए बोली, “भैया, मुझे चोद दो।” उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और अपने कपड़े उतार फेंके। उसका लंड बाहर आया—लंबा, मोटा, और तना हुआ। “रेखा, तेरी गांड मेरे लिए तैयार है,” उसने कहा। मैं काँप रही थी।

उसने मुझे उल्टा किया। मेरी गांड उसके सामने उभरी—मुलायम, गोल, और उसे बुलाती हुई। उसने पहले मेरी चूत पर हाथ रखा। वह गीली और गर्म थी। उसने मेरी चूत चाटी, और मैं चीखी— “आह, भैया, मैं पागल हो जाऊँगी।” उसने मेरी चूत चूसी। मेरा रस उसके मुँह में गया। “रेखा, तेरी चूत मीठी है, लेकिन मुझे तेरी गांड मारनी है,” उसने कहा। उसने मेरी गांड पर तेल लगाया—होटल के टेबल पर एक छोटी बोतल थी।

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उसने मेरी गांड पर लंड रगड़ा। मैं काँप रही थी। उसने एक जोरदार धक्का मारा, और उसका लंड मेरी गांड में घुस गया। मैं चीखी— “आह, भैया, मेरी गांड फट गई।” वह बोला, “रेखा, थोड़ा सहन कर।” उसने मेरी गांड मारना शुरू किया। उसका लंड मेरी गांड में अंदर-बाहर हो रहा था। मेरे स्तन बिस्तर पर दब गए थे, और मैं सिसक रही थी— “उफ, भैया, तुम मुझे मार डालोगे।” उसने मेरी गांड पर थप्पड़ मारा और बोला, “रेखा, तेरी गांड मुझे चोदने के लिए मजबूर करती है।”

मेरी गांड दुख रही थी, लेकिन साथ ही एक अलग सा सुख भी महसूस हो रहा था। उसने मेरी चूत में उँगलियाँ डालीं और उसे भी रगड़ा। मैं चीख रही थी— “आह, भैया, जोर से। मेरी गांड और चूत दोनों चोदो।” वह पागलों की तरह मेरी गांड मार रहा था। होटल के कमरे में मेरी सिसकियाँ और उसके धक्कों की आवाज गूँज रही थी। रात बीती, और उसने मेरी गांड और चूत दोनों चोदी। कभी उसने मुझे उल्टा रखकर मेरी गांड मारी, कभी मुझे उठाकर मेरी चूत में ठोका। मैं चीखी— “भैया, मेरी गांड भर दो।” उसने मेरी गांड में अपना वीर्य छोड़ा, और मैं बिस्तर पर ढह गई।

सुबह हुई। हम दोनों पसीने से भीग चुके थे। मेरी गांड और चूत दुख रही थीं। संदीप ने मेरे स्तन दबाए और बोला, “रेखा, तेरी गांड मारने में बहुत मजा आया।” मैं हँसी और बोली, “भैया, जो सुख तूने मुझे दिया, उसे मैं कभी नहीं भूलूँगी।” उसने मेरे होंठों पर चूमा, और मैंने उसकी छाती पर सिर रखा।

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उस रात के बाद हमारा रिश्ता बदल गया। संदीप जब भी मुझसे मिलता है, मेरी गांड मारता है। मेरी गांड, मेरी चूत, मेरे स्तन—सब कुछ उसका हो गया। हमने एक हद पार की, जो गलत थी, लेकिन उस गलती में एक अलग सा सुख था। भैया ने मेरी गांड होटल में मारी, और मैं उस आग में फिर से जी उठी।

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